कर्म, भक्ति और ज्ञान योग का लक्ष्य साक्षी की साधना है

साक्षी की साधना ऐसे हैं जैसे इस चित्र को देखना।
साक्षी की साधना मतलब भक्ति योग, कर्म योग और ज्ञान योग से ऊपर उठाकर तीनों जिसकी सीढ़ी हैं उसे ही सीधे साध लेना।और आज के युग के लिए ओशो इसे सबसे सरल मानते हैं, यही है मार्ग समय की कमी से जूझते लोगों के लिए।
शरीर, मन और आत्मा ->आत्मज्ञान

अष्टावक्र महागीता भाग १, #४, पहले प्रश्न का उत्तर

 (from “अष्टावक्र महागीता, भाग एक – Ashtavakra Mahageeta, Vol. 1  : युग बीते पर सत्य न बीता,  सब हारा पर सत्य न हारा (Hindi Edition)” by Osho .)

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यह लेख इस उत्तर को सम्पादित करके अपने विचार और अनुभव से आज के परिप्रेक्ष्य में, आज के पाठकों के लिए संशोधित किया गया है. पूरी किताब ही पढ़ने, गुनने और प्रयोग करने जैसी है. पढ़ने के लिए लिंक का उपयोग करें।

 

ओशो कहते हैं :

“मनुष्य के जीवन को हम चार हिस्सों में बांट सकते हैं।

सबसे पहली परिधि तो कर्म की है।

करने का जगत है सबसे बाहर। (extrovert लोगों के लिए उपयोगी, इसे कर्मयोग कहा जो कर्म+ध्यान = साक्षित्व हुआ)

थोड़े भीतर चलें तो फिर विचार का जगत है। (विचारशील लोगों या introvert, इसे ज्ञान योग कहा जो विचार+ध्यान = साक्षित्व हुआ)

और थोड़े भीतर चलें तो फिर भाव का जगत है, भक्ति का, प्रेम का। (भावना प्रधान लोग उनके लिए समर्पण +ध्यान= साक्षित्व )

और थोड़े भीतर चलें, केंद्र पर पहुंचें, तो साक्षी का। साक्षी हमारा स्वभाव है, क्योंकि उसके पार जाने का कोई उपाय नहीं–कभी कोई नहीं गया; कभी कोई जा भी नहीं सकता।

साक्षी का साक्षी होना असंभव है। साक्षी तो बस साक्षी है। साक्षी की बुनियाद पर यह हमारा भवन है भाव का, विचार का, कर्म का।

इसलिए तीन योग हैं: कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग। वे तीनों ही ध्यान की पद्धतियां हैं।

उन तीनों से ही साक्षी पर पहुंचने की चेष्टा होती है।”

“कर्मयोग का अर्थ है: कर्म + ध्यान। सीधे कर्म से साक्षी पर जाने की जो चेष्टा है, वही कर्मयोग है। तो ध्यान पद्धति हुई, और साक्षी-भाव लक्ष्य हुआ। पूछा है, ‘ध्यान और साक्षित्व में क्या संबंध है?’ ध्यान मार्ग हुआ, साक्षित्व मंजिल हुई। ध्यान की परिपूर्णता है साक्षित्व। और साक्षी-भाव का प्रारंभ है ध्यान। तो जो कर्म के ऊपर ध्यान को आरोपित करेगा, जो कर्म के जगत में ध्यान को जोड़ेगा–कर्म + ध्यान–वह कर्मयोगी है।

फिर ज्ञानयोगी है, वह विचार के ऊपर ध्यान को आरोपित करता है। वह विचार के जगत में ध्यान को जोड़ता है। वह ध्यानपूर्वक विचार करने लगता है। एक नयी प्रक्रिया जोड़ देता है कि जो भी करेगा होशपूर्वक करेगा।”

लेकिन औषधि एक ही है–मधु, दूध या जल, कोई फर्क नहीं पड़ता, वह तो सिर्फ औषधि को गटकने के उपाय हैं, गले से उतर जाये, औषधि अकेली न उतरेगी। ध्यान औषधि है। तीन तरह के लोग हैं जगत में।

कर्मयोगियों के लिए ठीक है कि कर्म पर ही सवारी कर लो, इसी का घोड़ा बना लो! इसी में मिला लो औैषधि को और गटक जाओ|

तुम ध्यानपूर्वक कर्म करने लगो। जो भी करो, मूर्च्छा में मत करो, होशपूर्वक करो। करते समय जागे रहो।”

ज्ञानयोगी को कहा तुम विचार में ही मिलाकर ध्यान को पी जाओ। विचार को रोको मत; विचार आए तो उसे देखो। उसमें खोओ मत; थोड़े दूर खड़े रहो, थोड़े फासले पर। शांत भाव से देखते हुए विचार को ही धीरे-धीरे तुम साक्षी-भाव को उपलब्ध हो जाओगे। विचार से ही ध्यान को जोड़ दो।”

फिर कुछ हैं, वे कहते हैं: न हमें विचार की कोई झंझट है, न हमें कर्म की कोई झंझट है; भाव का उद्रेक होता है, आंसू बहते हैं, हृदय गदगद हो आता है, डुबकी लग जाती है–प्रेम में, स्नेह में, श्रद्धा में, भक्ति में। सदगुरु कहते हैं, इसी को औषधि बना लो; इसी में ध्यान को जोड़ दो। आंसू तो बहें–ध्यानपूर्वक बहें। रोमांच तो हो, लेकिन ध्यानपूर्वक हो।

लेकिन सार-सूत्र ध्यान है। ये जो भक्ति, कर्म और ज्ञान के भेद हैं, ये औषधि के भेद नहीं हैं। औषधि तो एक ही है। और यहीं तुम्हें अष्टावक्र को समझना होगा। अष्टावक्र कहते हैं, सीधे ही छलांग लगा जाओ। औषधि सीधी ही गटकी जा सकती है। वे कहते हैं, इन साधनों की भी जरूरत नहीं है जब जीवन जीना अपने आप में तपस्या करने जैसा दुरूह कार्य हो गया हो तब उसका फ़ायदा उठाते हुए बुद्धिमान व्यक्ति को सीधे साक्षी की साधना की जानी चाहिए। 

असल में औषधि की भी ज़रूरत नहीं है, यह बोध ही काफ़ी है कि तुम वही हो जिसे तुम ढूँढ रहे हो.

इसी को लाओ त्ज़ु ने pathless path कहा है या ताओ कहा है. चीनी या ZEN लोग Wu-Wei-Wu कहते हैं मतलब effortless effort. मात्र बोध से सीधे छलांग लगायी जा सकती है, यह घटना एक क्षण में हो जाती है और quantum jump से व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त होता है.

ओशो का संदेश यह है कि आज के लोगों के लिए साक्षी कि साधना द्वारा सीधी छलांग लगाकर ज्ञान को प्राप्त करना ही सर्वश्रेष्ठ है। ‘ज़ोरबा दी बुद्धा’ कहा ऐसे सन्यासियों को । उन्होंने जीवन को भरपूर जी लिया है और जीवन जीकर उन्होंने बाहर की दुनिया में कोई सुख नहीं है यह अनुभव से जान लिया है। इसलिए उनको ध्यान की तीनों पद्धतियों से एक साथ गुज़ारना होगा और किसी एक का चुनाव उसकी ध्यान में सफलता से ही करना होगा । उस पर ज़्यादा ज़ोर देकर और बाक़ी को भी जब जैसा काम हो उसके अनुसार उपयोग करते हुए संसार में रहकर साधना करनी होगी । ओशो के पुणे स्थित तीर्थ/commune में इसकी सारी व्यवस्था की गयी है जहाँ से सीखकर बाक़ी जीवन उसके अनुसार जिया जा सकता है ।

ओशो द्वारा सुझाया सहज ध्यान यानी होंश पूर्वक जीना यानी रोज़ के काम में होंश का प्रयोग मेरे जीवन को बदलकर रख गया। अपने आप सहज ही मन सपने देखना कम कर देता है, फिर जब भी सपना शुरू करता है तो विवेकपूर्वक उसका आना दिखाई देने लगता है, और दिखाई दे गया कि फिर बुना नया सपना मन ने-तो फिर रोकना कोई कठिन काम नहीं है। मैंने इसे ओशो की एक किताब से सीखा और जीवन में सुबह ब्रश करते समय प्रयोग करके साधा। इसे आप मेरे अंग्रेज़ी के पोस्ट ‘Awareness as meditation’ पर जाकर पढ़ सकते हैं। 

नमस्कार ….. मैं अपनी साक्षी की साधना के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं अपने अनुभव से तौलकर आज भी मानने लायक समझता हूँ। अधिकजानकारी के लिए और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल या पॉडकास्ट आदि सुनें।

कॉपीराइट © ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, अधिकतर प्रवचन की एक एमपी 3 ऑडियो फ़ाइल को osho डॉट कॉम से डाउनलोड किया जा सकता है या आप उपलब्ध पुस्तक को OSHO लाइब्रेरी में ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।यू ट्यूब चैनल ‘ओशो इंटरनेशनल’ पर ऑडियो और वीडियो सभी भाषाओं में उपलब्ध है। OSHO की कई पुस्तकें Amazon पर भी उपलब्ध हैं।

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